फरहत — एक नाम, जो सिर्फ एक इंसान की पहचान नहीं, बल्कि आज भारत के सिस्टम से जुड़े कई सवालों की गूंज बन चुका है। पाकिस्तान में जन्मी लेकिन भारत में पली-बढ़ी फरहत, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से एक भावुक गुहार लगा रही है। उसकी जिंदगी भारत में बीती, उसने यहां की संस्कृति, भाषा और समाज को अपनाया, लेकिन आज भी वह उस सरकारी पहचान और नागरिकता से वंचित है, जो एक आम नागरिक का बुनियादी हक होता है।
फरहत का मामला न सिर्फ मानवीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत के नागरिकता प्रणाली, प्रशासनिक प्रक्रियाओं और प्रवासी लोगों के अधिकारों पर भी सवाल उठाता है। एक लड़की जो अपने वतन से बचपन में आई, जिसने यहीं शिक्षा प्राप्त की, यहीं रिश्ते बनाए, और इसी मिट्टी में अपनी पहचान ढूंढने की कोशिश की — क्या उसे आज भी सिर्फ जन्मभूमि के आधार पर अनदेखा किया जाना न्यायसंगत है?
फरहत ने मीडिया के माध्यम से सरकार से यह सवाल किया है कि क्या सिर्फ जन्मस्थान से किसी की भारतीयता तय होती है? या फिर उस भावना और समर्पण से, जिससे कोई भारत को अपना देश मानता है? उसका दर्द और संघर्ष न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि हजारों ऐसे लोगों की कहानी है जो सीमाओं की राजनीति में उलझे रह जाते हैं।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से की गई अपील सिर्फ एक व्यक्ति की आवाज़ नहीं, बल्कि एक पीड़ित भारतीय आत्मा की पुकार है — जो पहचान और अधिकार के लिए तरस रही है। फरहत की ये अपील हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी नीतियां मानवीय संवेदनाओं के अनुरूप हैं? क्या हमें अपनी नागरिकता व्यवस्था में मानवीय पहलुओं को अधिक प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए?
इस वीडियो में देखिए फरहत की ज़ुबानी उसका संघर्ष, उसकी भावनाएं और उसका सवाल – "क्या सरकार मेरी भी सुनेगी?"
क्या फरहत को उसका हक़ मिलेगा? क्या उसकी अपील देश की नीति-निर्माताओं तक पहुँचेगी?
For more information, visit: https://youtu.be/nxX8tdtjtuE
0 - Comments