भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद ने एक बार फिर नया मोड़ ले लिया है। हाल ही में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक अहम बयान देते हुए चीन को स्पष्ट और सख्त शब्दों में चेतावनी दी है कि गलवान जैसी घटना दोबारा नहीं होनी चाहिए। यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक बड़ा कूटनीतिक संदेश भी है, जिसमें भारत ने संयम के साथ सख्ती और शांति के साथ स्पष्टता का प्रदर्शन किया है।
राजनाथ सिंह ने चीन के सामने एक चार सूत्रीय फॉर्मूला रखा है जिसमें उन्होंने शांति, परस्पर सम्मान, संवाद और नियंत्रण की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने साफ कहा कि भारत हमेशा शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास रखता है, लेकिन अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा। यह बयान भारत की कूटनीतिक सोच को दर्शाता है जो संघर्ष नहीं बल्कि संवाद और समझ के ज़रिए समाधान तलाशने में विश्वास रखती है।
भारत का यह रुख ऐसे समय सामने आया है जब चीन के साथ सीमा पर स्थिति अभी भी पूरी तरह सामान्य नहीं है और कई क्षेत्रों में सैन्य गतिशीलता बनी हुई है। राजनाथ सिंह की ओर से दिया गया यह चार सूत्रीय प्रस्ताव एक तरफ जहां शांति और स्थिरता की दिशा में कदम है, वहीं दूसरी ओर यह चीन को यह भी याद दिलाता है कि भारत अब पुराना भारत नहीं रहा और हर स्तर पर तैयार है।
इस बयान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीरता से लिया जा रहा है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि भारत अब सीमा विवादों को लेकर रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक कूटनीति अपनाने को भी तैयार है। यह संदेश चीन को चेतावनी भी है कि किसी भी उकसावे की स्थिति में भारत पीछे नहीं हटेगा, और साथ ही यह प्रस्ताव भी है कि यदि आपसी सम्मान और संवाद की राह अपनाई जाए, तो दोनों देशों के संबंधों को स्थिरता और दिशा दी जा सकती है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या राजनाथ सिंह का यह फॉर्मूला वास्तव में दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने में प्रभावी साबित होगा? क्या चीन भारत के इस रुख को समझेगा और उसका सकारात्मक जवाब देगा? आने वाले दिनों में इस पर नजर रखना ज़रूरी होगा।
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