उपराज्यपाल
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में सामान्य बहिस्राव उपचार संयंत्रों की स्थिति को देखने के लिए समीक्षा बैठक की। जिसमें यमुना में अनुपचारित औद्योगिक प्रवाह से चिंतित उपराज्यपाल ने यमुना में प्रदूषण को कम करने में सीईटीपी की भूमिका और पूर्ण क्षमता व मौजूदा अंतर का 30 दिन के अंदर आकलन करने के निर्देश दिया है। बैठक में उपराज्यपाल ने 13 सीईटीपी से संबंधित विभागों और एजेंसियों के अधिकारी सहित मुख्य सचिव भी मौजूद रहे।
संयंत्रों का ऑडिट नहीं
एलजी ने बैठक में समीक्षा करते हुए कहा कि सभी सीईटीपी अपनी क्षमता के महज 68-70 प्रतिशत पर काम कर रहे हैं। कई संयंत्रों को अपग्रेड करना है। पिछले 10 सालों से संयंत्रों का कोई ऑडिट नहीं हुआ था। 40805 औद्योगिक इकाइयों और दूसरे प्रतिष्ठानों में से केवल 64 प्रतिशत (26077) ही सीईटीपी से जुड़े थे। 36 प्रतिशत यानी 23149 औद्योगिक इकाइयों से इलाज के लिए बगैर किसी प्रवाह को यमुना को प्रवाहित किया गया है। एलजी की तरफ से औद्योगिक संगठनों और सरकार की घोर लापरवाही के साथ-साथ आपराधिक बताया था।
यमुना में लगातार बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय
एलजी ने चिंता जताते हुए कहा कि अभी 36 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयां सीईटीपी से जोड़ी नहीं गई। 33 प्रतिशत ने सदस्यता शुल्क का भी भुगतान नहीं किया। इससे यमुना में प्रदूषण बढ़कर असंतुलित हो गया। एलजी के निर्देश पर सभी पहलुओं का गहनता से मूल्यांकन होना बेहद जरूरी है। उपराज्यपाल ने मूल्यांकन का काम पूरा करने के लिए 30 दिन की समय सीमा तय की है।
उपराज्यपाल का निर्देश
बैठक में यह भी सामने आया कि कोई दूसरा विकल्प नहीं होने की वजह से उपचार के बाद सीईटीपी से नजफगढ़ नाले में ही पानी को छोड़ा जा रहा था। नतीजतन उपचारित प्रवाह दोबारा प्रदूषित हो रहा था। एलजी ने डीडीए, एमसीडी और दिल्ली जल बोर्ड को संबंधित जल निकायों की पहचान करने का निर्देश दिया था। इसके बाद नजफगढ़ नाले में प्रवाहित करने के बजाय उपचारित पानी को यमुना में प्रवेश करने की इजाजत देने के निर्देश दिए थे।
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