भारतीय परिवेश में कितना टिक पाएंगे नामीबिया से लाए चीते


नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क पहुंचे बहुचर्चित आठ चीते फिलहाल खबरों

नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क पहुंचे बहुचर्चित आठ चीते फिलहाल खबरों



By 0 Posted on: 21/09/2022

भारतीय परिवेश में कितना टिक पाएंगे नामीबिया से लाए चीते   

नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क पहुंचे बहुचर्चित आठ चीते फिलहाल खबरों में बने हुए हैं। पांच मादा और तीन नर चीते अगले कुछ हफ्ते भारत की आबोहवा और प्रकृति को समझने में बिताएंगे। करीब एक महीने के क्वारंटाइन के दौरान यह भी देखा जाएगा कि उनमें कोई ऐसा परजीवी तो नहीं है जो भारतीय वन्यजीवों पर असर डाल सकता है। इसके बाद धीरे धीरे उन्हें बड़े संरक्षित इलाके में छोड़ा जाएगा। दुनिया में किसी बड़े मांसाहारी जीव को दूसरे महाद्वीप में बसाने की यह पहली कोशिश है। प्रयोग सफल रहा तो आने वाले वर्षों में दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इस तरह की कोशिशें दिखाई पड़ेंगी। 

19वीं शताब्दी से पहले तक भारत समेत एशिया महाद्वीप में चीते अच्छी खासी संख्या में मौजूद थे। चीतों की उस प्रजाति को एशियाई चीता कहा जाता था। आज यह सिर्फ ईरान में बचे हैं। ज्यादातर देशों में शिकार के लिए चीतों को कैद कर उनका इस्तेमाल शिकार के लिए करने और उनका शिकार करने के कारण एशिया के ज्यादातर देशों से चीते लुप्त हो गए। 

भारत में 1947 में सरगुजा के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने आखिरी बचे तीन चीतों का शिकार किया। इसके पांच साल बाद 1952 में भारत में एशियाई चीतों को आधिकारिक रूप से लुप्त घोषित कर दिया। अब 70 साल बाद चीते भारत लाये गये हैं, लेकिन ये अफ्रीकी चीते हैं। बीते पांच दशकों में भारत के कुछ वन्य अधिकारियों ने ईरान से एशियाई चीते लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद ही दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से चीते लाने की पहल की गयी। 

आठ हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी यात्रा कर भारत पहुंचे अफ्रीकी चीतों के लिए कूनो नेशनल पार्क नई चुनौतियां पेश करेगा। कूनो में पहली बार चीतों का सामना कुछ बिल्कुल नई प्रजातियों से होगा। इनमें भालू और भेड़िया जैसे जीव शामिल हैं। कूनो में हिरणों और चीतलों की अच्छी खासी संख्या है। हो सकता है कि शुरुआत में चीतों को शिकार करने में ज्यादा परेशानी ना हो। कूनो के हिरण ये नहीं जानते हैं कि उनसे तेज दौड़ने वाला शिकारी जीव अब उनके बीच है।  अफ्रीका के जंगलों में शिकार करते करते वक्त चीते करीब 10 फीसदी मौकों पर ही सफल होते हैं, यानि 10 बार कोशिश करने पर वे एक बार शिकार कर पाते हैं। 

अफ्रीका में चीते शेरों, तेंदुओं और लकड़बग्घों के बड़े झुंड के सामने कमजोर पड़ जाते हैं, वहीं कूनो में शेर और बाघ जैसे बड़े प्राकृतिक दुश्मन उनके सामने मौजूद नहीं हैं। कूनो में अफ्रीका के मुकाबले लकड़बग्घों के झुंड भी कम हैं। तेंदुए और जंगली कुत्तों से निपटना चीते जानते हैं लेकिन भेड़िये और भालू उनके सामने बिल्कुल नई चुनौती पेश करेंगे। 

फिलहाल दुनिया में दक्षिण अफ्रीका मात्र एक ऐसा देश है, जहां के जंगलों में चीतों की संख्या बढ़ रही है। दक्षिण अफ्रीका में चीता संरक्षण से जुड़े वन्य जीव चिकित्सक डॉ. आड्रियान टोरडिफे के मुताबिक अफ्रीकी महाद्वीप के कई देशों में चीता संरक्षण की कोशिशें सफल नहीं हुई हैं, लेकिन भारत में संरक्षण से जुड़े कड़े कानून उम्मीद जगाते हैं। 

बीते 100 साल में चीतों ने अपना 90 फीसदी इलाका खोया है और इसका असर सिर्फ उनकी आबादी पर ही नहीं बल्कि पूरे इकोसिस्टम पर पड़ा है। बड़े शिकारी जीव जिस इलाके में रहते हैं, वहां कई वनस्पतियों को फिर से पनपने का मौका मिलता है। अगर ये शिकारी खत्म होते हैं तो हिरण समेत तमाम जीव कई वनस्पतियों को पनपने का मौका ही नहीं देते हैं। भारत के जंगलों में बाघ, तेंदुए, शेर, भेड़िये, जंगली कुत्ते और अजगर यही भूमिका निभाते हैं। इस कड़ी में चीते के जुड़ने का मतलब होगा कि बड़े इलाके में ताजा वनस्पतियां चुगने वाले जीवों का पीछा अब जमीन पर सबसे तेज रफ्तार से दौड़ने वाली बड़ी बिल्ली भी कर सकेगी।