कोरोना एक ऐसी महामारी रही जिसकी कहानियां ये बड़ी हो रही पीढ़ी बूढ़ी होकर सुनाएगी। कभी अपनों को खो चुके और अपनों को खोने के डर की सिहरन के बारे में बताएंगें तो कभी बताएंगें पहली बार लगा कि सलाखें इतनी बुरी भी नही बशर्ते कैदखाना घऱ हो और कैदी घरवाले। कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा तो एक बार फिर वही जिंदगी जीने का मौका मिला जिसका जिक्र अक्सर पापा या दादा से सुना। मुझे याद है कि उस वक्त दूरदर्शन पर एक बार फिर से रामायण और महाभारत का प्रसारण शुरू हुआ। पूरे परिवार ने एक ही कमरे में एक ही टीवी पर एक ही सीरियल देखा। रामायण और महाभारत दोनों ही दो बार आया करती थी तो हम सुबह महाभारत देखते शाम को रामायण।
कई दिनों से अंकिता भंडारी के बारे में सुन रही हूं, तो मन में आया कि जब त्रेतायुग में सीता का हरण हुआ तो रावण उसे लंका ले गया और जब भी रावण सीता से मिलने आता तो वे उससे घास के तिनके की ओट में जवाब दिया करतीं। फिर द्वापर में महाभारत आई जिसमें भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण किया गया और पांडव देखते रहे मगर फिर हुआ युद्ध।
फिर आया कलयुग....
जब भंवरी...निर्भया....जैसे कितने ही नाम दर्ज हुए....
इस क्रम पर जब भी नजर जाती है तो लगता है कि जहां एक युग खत्म होता है वहीं से शुरू होता है दूसरा युग....और शायद कलयुग के बाद कुछ बाकी रह ही नही जाएगा...इसलिए फिर आएगा सतयुग यानि फिर बढ़ेगें हम अंत से आरंभ की ओर।
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