पोस्टमार्टम में डीएनए और फिंगरप्रिंट
उत्तर प्रदेश में किसी भी पीड़ित को न्याय मिलने में काफी समय लगता है। इस दौरान आरोपी या तो जेल की सलाखों के पीछे ही दम तोड़ देता है, या फिर पुलिस की नाक के नीचे से खुद को बचाकर भागने में कामयाब हो जाते हैं। इसके अलावा पीड़ित को न्याय मिलने में भी पुलिस की लापरवाही के कारण खासा दिक्कतों का सामना करने को मिलता है। हालांकि अब गृह विभाग द्वारा इसे लेकर ठोस कदम उठाने शुरू कर दिए। इसमें अब मामले की विवेचना, उनका समयबद्ध निस्तारण और पर्यवेक्षण को लेकर कई अहम दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं।
तस्वीरें और केस डायरी में संलिप्ता
प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद ने इसे कहा कि पोस्टमार्टम के समय डीएनए और फिंगरप्रिंट का सैंपल लेना बेहद ही अहम कड़ी है। मृतक की चोटों को उभारने वाले रंगीन तस्वीरें और केस डायरी में उनकी संलिप्ता बेहद जरूरी है। जो आरोपी को दोषी साबित करने में काफी मदद करेगा। इसके साथ ही इन निर्देशों में खास बात यह है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट को अब हाथ से लिखने के बजाय टाइप किया जाएगा।
केस डायरी का होगा हिस्सा
15 बिंदुओं के इन निर्देशों में यह भी कहा गया है कि बंदूक से गोली लगने से मामलों में मृतक के पूरे शरीर के बजाय केवल उस अंग का एक्स-रे कराया जाएगा जहां गोली लगी हो। मामलों में विवेचना के दौरान गवाहों का बयान ऑडियो, वीडियो व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से अंकित किया जाएगा। जो केस डायरी का ही हिस्सा होगा।
सार्वजनिक तौर पर पीड़िंत की पहचान होगी
दरअसल आरोपपत्र व फाइनल रिपोर्ट दायर करते समय इसे कोर्ट में पेश किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों की माने तो लैंगिक और बच्चों के खिलाफ अपराधों में पीड़ित की पहचान सार्वजनिक तौर पर की जाएगी। जिलों में आपराधिक मामलों की गुणवत्तापूर्वक और समयबद्ध विवेचना सुनिश्चित की जाएगी। सभी जिलों में संयुक्त निदेशक अभियोजन की अध्यक्षता में विधि प्रकोष्ठ का गठन कर विवेचकों और अभियोजकों को प्रशिक्षित भी कराएं।
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