Delhi

India-USA Trade Dispute: ट्रंप की टैरिफ नीति और वैश्विक असर

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में पिछले कुछ वर्षों से तनाव देखने को मिल रहा है। ट्रंप प्रशासन की "अमेरिका फर्स्ट" नीति और टैरिफ बढ़ाने की रणनीति ने वैश्विक व्यापार को हिला कर रख दिया है। भारत पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क और व्यापारिक बाधाओं ने दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही आर्थिक साझेदारी को चुनौती दी है।

दरअसल, अमेरिका ने स्टील और एल्युमिनियम जैसे उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाया, जिससे भारत समेत कई देशों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा। इसके जवाब में भारत ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने का निर्णय लिया। इस विवाद ने न केवल द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित किया बल्कि वैश्विक स्तर पर एक "ट्रेड वॉर" का माहौल खड़ा कर दिया।

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की यह नीति केवल भारत तक सीमित नहीं है। जापान, चीन और यूरोपीय संघ जैसे बड़े आर्थिक ब्लॉक्स भी अमेरिका की टैरिफ रणनीति से प्रभावित हुए हैं। मोदी और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच हुई मुलाकातों में भी यही मुद्दा उठाया गया कि अगर अमेरिका टैरिफ बाधाएं जारी रखता है तो वैश्विक सप्लाई चेन पर गहरा असर पड़ेगा।

भारत और अमेरिका दोनों के बीच आईटी सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स, ऊर्जा और रक्षा जैसे क्षेत्रों में मजबूत साझेदारी रही है। लेकिन टैरिफ विवाद ने इस सहयोग पर अस्थायी बादल डाल दिए हैं। भारत का मानना है कि व्यापार को संतुलित रखने के लिए पारस्परिक समझौता और सहयोग ज़रूरी है। वहीं अमेरिका का तर्क है कि उसके घरेलू उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करना उसकी प्राथमिकता है।

यह विवाद सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अहम है। भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अमेरिका और भारत के बीच मजबूत संबंध वैश्विक स्थिरता के लिए आवश्यक हैं। ऐसे में यदि व्यापारिक विवाद सुलझ नहीं पाया तो यह दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी पर भी असर डाल सकता है।

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि भारत-अमेरिका व्यापार विवाद वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों की राय है कि अगर दोनों देश कूटनीतिक संवाद और सहयोग के माध्यम से समाधान निकालते हैं तो न केवल द्विपक्षीय संबंध मजबूत होंगे बल्कि वैश्विक व्यापार को भी स्थिरता मिलेगी।

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