HimachalPradesh

हिमालयी क्षेत्रों में क्लाउडबर्स्ट का कहर, जलवायु परिवर्तन से बढ़ा खतरा

पिछले कुछ हफ्तों में हिमालयी क्षेत्रों में आई प्राकृतिक आपदाओं ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम जलवायु परिवर्तन के कितने गंभीर दौर में प्रवेश कर चुके हैं। उत्तराखंड के धराली, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ और कठुआ, और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में क्लाउडबर्स्ट (बादल फटना) और भूस्खलन की कई घटनाओं ने भारी जनहानि और आर्थिक नुकसान पहुँचाया है।

इन घटनाओं में न सिर्फ लोगों की जानें गईं, बल्कि कई घर, सड़कें, पुल और फसलें भी पूरी तरह तबाह हो गईं। आपातकालीन राहत कार्यों में लगी टीमें लगातार प्रयास कर रही हैं, लेकिन दुर्गम इलाकों तक पहुंचना और मदद पहुँचाना अब भी बड़ी चुनौती बना हुआ है।

विशेषज्ञों और मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सब जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का प्रत्यक्ष परिणाम है। ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने, मानसून के असामान्य पैटर्न, और लगातार बढ़ते तापमान की वजह से हिमालयी क्षेत्रों में क्लाउडबर्स्ट और भूस्खलन जैसी आपदाएं पहले से अधिक बार और अधिक तीव्रता के साथ सामने आ रही हैं।

भारत के लिए यह सिर्फ एक मौसम से जुड़ी चेतावनी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक आपदा प्रबंधन चुनौती है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में सतत निगरानी (Continuous Monitoring), अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (Early Warning System) और स्थानीय लोगों को जागरूक करने की नीतियों को तुरंत प्रभाव से लागू करने की जरूरत है।

इसके साथ ही, पर्वतीय क्षेत्रों में अवैज्ञानिक निर्माण कार्य, जंगलों की कटाई और अंधाधुंध पर्यटन को नियंत्रित करना भी ज़रूरी है। यदि इन सभी पहलुओं पर जल्द और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और भी गहरा हो सकता है।

इस समय पूरे देश की निगाहें सरकार की तैयारियों, राहत कार्यों की गति और भविष्य की रणनीति पर टिकी हैं। हिमालय केवल भारत की सीमा नहीं, बल्कि इसके जल, पर्यावरण और पारिस्थितिकी का आधार है — और उसे बचाना अब हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

For more information, visit: https://youtu.be/pCkb9T0kgtU

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